माँ कामाख्या मंदिर यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी: Maa Kamakhya Temple Yatra Guide in Hindi

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भारत की भूमि पर आज भी Maa Kamakhya Temple जैसे ही कई हजारों मंदिरें मौजूद हैं, जो देखने में भव्य और शक्तियों मे चमत्कारिक हैं। ये सभी मंदिर भक्तों के विश्वास तथा आस्था के केंद्र के रूप में विश्व विख्यात हैं।

  • Maa Kamakhya Temple
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कामाख्या मंदिर की यात्रा

आज हम एक ऐसे ही चमत्कारिक मंदिर के मानस यात्रा पर चलते हैं, और जानते हैं, उसकी सिद्धियों की हजारों अनगिनत कहानियों के बारे मे। जिसे सुनकर हमारी आस्था और भी बढ़ जाती है। “माँ कामाख्या देवी मंदिर” भारत का एक ऐसा मंदिर जिसे तंत्रिकों, मंत्रिकों और श्रद्धापात्रों का गढ़ क्षेत्र माना जाता है।

कामाख्या देवी मंदिर की अवस्थिति

Kamakhya Temple
Kamakhya Temple

भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम की राजधानी दिसपुर के समीप गुवाहाटी में नीलांचल पर्वत पर माँ कामाख्या का मंदिर स्थित है। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। असम राज्य मे अवस्थित नील शैल पर्वत मालाओं पर स्थित भव्य मंदिर मे मां भगवती देवी विराजित रहती हैं।

चमत्कारिक माँ कामाख्या मंदिर

इस मंदिर का विशेष तांत्रिक महत्व भी है। यह शक्तिपीठ अष्टादश महा शक्ति पीठों और सती के 51 शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखती है। यहीं पर माता भगवती की महामुद्रा योनितीर्थ स्थित है। इस मंदिर मे माता सती सूक्ष्म रुप में निवास करती हैं।

इस मंदिर मे आपको कोई भी देवी की तस्वीर या मूर्ति दिखाई नहीं देगी। इस मंदिर के गर्भगृह मे एक कुंड बना हुआ है, जो की हमेशा फूलों से ढका हुआ रहता है। मनोकामना पूर्ति के लिए यह मंदिर विशेष रूप से कृपापात्रों मे प्रसिद्द है।

सती के आठ जागृत शक्तिपीठ और इसके स्वरूप

पुराणों के अनुसार माँ कामाख्या शक्तिपीठ की उत्पत्ति के सम्बन्ध मे कथा यह है, कि भगवान विष्णु ने माता सती से भगवान शिव का मोह भंग करने के लिए अपने चक्र से माता सती के 51 टुकड़े कर दिए थे। उन्हीं टुकड़ों में जहां पर योनि गिरी वह जगह बन गयी पवित्र तीर्थ स्थल माँ कामाख्या माता का मंदिर

माँ कामाख्या के आठ जागृत शक्तिपीठ

  • कलकत्ता वाली काली माता मंदिर – कालीघाट, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
  • हिंगलाज भवानी मंदिर
  • शाकंभरी देवी का मंदिर, सहारनपुर
  • विंध्यवासिनी देवी शक्तिपीठ
  • चामुंडा देवी शक्तिपीठ, हिमाचल प्रदेश
  • ज्वालामुखी मंदिर, हिमाचल प्रदेश
  • हरसिद्धि माता मंदिर, उज्जैन (मध्य प्रदेश)
  • छिन्नमस्तिका शक्ति पीठ रजरप्पा( झारखंड)

इन सभी मंदिरों के बारे मे भक्तों मे ऐसी विश्वास और मान्यता है, कि जो भी भक्तगण इन शक्तिपीठों के तीन बार दर्शन कर लेते हैं, उनको सांसारिक भव बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

शक्ति स्वरूपा आदिशक्ति मां सती का तीर्थ स्थल कामाख्या देवी का मंदिर कौमार्य तीर्थस्थलके रूप मे जाना जाता है। इस तीर्थ में कौमार्य की पूजा अर्चना व अनुष्ठान करने की परंपरा है।

कामाख्या में प्रसिद्ध मेला और त्यौहार

अंबुबाची पर्व विश्व के सभी तांत्रिकों, मंत्रिकों एवं सिद्ध पुरुषों के लिए वर्ष में एक बार वरदान के रूप में मनाया जाता है। यह अंबुबाची पर्व भगवती सती का रजस्वला पर्व होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार सतयुग में यह पर्व 16 वर्ष में एक बार, द्वापर में 12 वर्षों में एक बार, त्रेता युग में 7 वर्ष में एक बार तथा कलिकाल में प्रत्येक साल जून माह में मनाया जाता है। 

प्रचलित धारणा यह भी है कि देवी कामाख्या मासिक चक्र के माध्यम से तीन दिनों के लिए गुजरती है। उस समय मां भगवती की गर्भ गृह स्थित महामुद्रा योनि तीर्थ से निरंतर तीन दिनों तक जल का प्रवाह के स्थान पर रक्तरंजित जल का प्रवाह होता है।

योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा

रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा

इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भ गृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाए जाते हैं, जो कि रक्त वर्ण हो जाते हैं। अजीबो-गरीब बात यह है, कि मंदिर के पुजारियों द्वारा यह वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं के बीच वितरित किए जाते हैं। इस पर्व पर भारत ही नहीं बल्कि, बांग्लादेश, तिब्बत और अफ्रीका जैसे देशों के तंत्र साधक यहां आकर अपनी साधना की सर्वोच्चता को प्राप्त करते हैं।

माँ कामाख्या से जुड़ी कथाएँ

माँ कामाख्या देवी के बारे में एक दंतकथा यह है, कि जब असुर राज नरकासुर अपने घमंड के मद में चूर होकर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने की जिद पर अड़ गया। तभी दुराचारी नरकासुर की मृत्यु को निश्चित मानकर महामाया माँ कामाख्या ने कहा कि

यदि तुम एक ही रात में नील पर्वत पर चारों तरफ पत्थरों के 405 पथों का निर्माण और कामाख्या मंदिर मे आने वाले आगंतुकों के लिए एक विश्रामगृह बनवा दो। तो मैं तुम्हारी पत्नी बन जाऊंगी और यदि तुम ऐसा नहीं कर पाए तो तुम्हारी मौत निश्चित होगी।

घमंड के मद में चूर और देवी पर आसक्त नरकासुर ने कार्य पूर्ण कर दिए परंतु विश्राम गृह का निर्माण कार्य चल ही रहा था, तभी देवी ने अपनी माया से मुर्गे द्वारा सवेरा होने की बांग लगवा दी। जिससे नरकासुर क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा करने लगा और ब्रह्मापुत्र नदी के तट पर उसका वध कर डाला और तब से लेकर आज तक वह स्थान ‘’कुक्टाचकी’’ के नाम से प्रसिद्ध है।

तत्पश्चात मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध कर दिया। नरकासुर की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। माँ कामाख्या देवी की उत्पत्ति के संबंध में पौराणिक कथा यह भी है कि जब देवी सती अपने दैवीय योग शक्ति से देह त्याग दी थीं तो भगवान शिव उनके माथे को लेकर घूमने लगे और उसके बाद भगवान विष्णु अपने चक्र से उनका देह काटते हुए भाग रहे थे।

इस तरह से 51 स्थलों पर उनके अंग गिरे और सभी के सभी शक्तिपीठ कहलाए इसी नीलांचल पर्वत पर देवी सती की योनि गिरी और उस योनि ने देवी का रूप धारण किया जिसे माँ कामाख्या कहा गया।

धर्मावलंबियों, मुझे आशा और पूर्ण विश्वास है, कि लोक आस्था और तंत्र साधकों का यह तीर्थ स्थल आपके लिए भी शुभकारी और मंगलदायी  होगा। इसकी ख्याति इतनी विश्वविख्यात है, कि देश विदेश के तमाम हिस्सों से हर साल लोग भारी तादाद में इस मंदिर मे पहुँचते हैं। और सभी श्रद्धापात्र अपनी मनोकामनायों को पूर्ण करते हैं।

कामाख्या देवी मंदिर की यात्रा कैसे करें?

कामाख्या मंदिर की यात्रा हवाई मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग इन तीनों माध्यम से कर सकते है –

हवाई मार्ग – गुवाहाटी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा, जिसे लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा के नाम से भी जाना जाता है। यह हवाई अड्डा भारत के सम्पूर्ण उत्तर-पूर्व का एक प्रमुख हवाई अड्डा है। माँ कामाख्या के दर्शन के लिए अपने शहर के नज़दीकी हवाई अड्डे से गुवाहाटी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा आ सकते है, इस हवाई अड्डा से भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। गुवाहाटी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर माँ कामाख्या मंदिर स्थित है।

रेलवे मार्ग – अगर आप कामाख्या मंदिर की यात्रा रेल के माध्यम से करना चाहते है तो पहला गुवाहाटी रेलवे स्टेशन जो की गुवाहाटी का प्रमुख रेलवे स्टेशन है, यह स्टेशन भारत की सभी प्रमुख शहरों से रेल लाइन अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, इससे मंदिर की यात्रा कर सकते है, इस स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है। और दूसरा कामाख्या रेलवे स्टेशन जो की शहर का दूसरा सबसे बड़ा रेलवे स्टेशन है, यह स्टेशन मंदिर से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है यहाँ से मंदिर की दूरी सिर्फ 6 किलोमीटर है। मंदिर तक पहुँचने के लिए स्टेशन के बाहर कैब/टैक्सी/बस आसानी से मिल जाती है।

सड़क मार्ग- कामाख्या देवालय तक की यात्रा बस के माध्यम से कर सकते है। गुवाहाटी बस सेवा असम राज्य के आसपास के सभी शहरों और राज्यों तक जुड़ा हुआ है, गुवाहाटी बस सेवा की तीन नोडल पॉइंट है अदाबारी, आईएसबीटी और पटलन बाजार असम राज्य के आस पास के सभी राज्यो और शहरों/कश्बों के लिए यह बस सेवा प्रदान करता है।

इसके अतिरिक्त आप सड़क मार्ग से कार के माध्यम से कामाख्या देवायल तक की यात्रा कर सकते है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

कामाख्या देवी मंदिर का रहस्य

कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माँ सती के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे तब कामाख्या में ही माँ सती की योनि भाग गिरा था।

कामाख्या देवी मंदिर पुजा विधि

जब माँ कामाख्या के रजस्वला का समय होता है तब मंदिर के भीतर सफ़ेद रंग के कपडे को बिछा दिया जाता है जिससे माता के मासिक धर्म से निकलने वाले खून से सफ़ेद वस्त्र लाल हो जाता है। इस लाल रंग के भीगे हुए वस्त्र को प्रसाद के रूप में भक्तों के बीच बाँट दिया जाता है।

कामाख्या मंदिर कब जाना चाहिए

माँ कामाख्या मंदिर दर्शन के लिए सबसे उचित समय अक्टूबर से मार्च महीना को माना गया है।

कामाख्या मंदिर कब बंद रहता है

22 जून को कामाख्या मंदिर के कपाट होते है और पुनः 26 जून को माँ कामाख्या को स्नान व श्रृंगार कराने के उपरांत दर्शन के लिए कपाट खोल दिए जाते है।

कामाख्या मंदिर कहाँ है ?

भारत के असम राज्य में कामाख्या मंदिर स्थित है। इस मंदिर के दर्शन के लिए गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर की दूर नीलांचल पहाड़ी पर कामाख्या देवी मंदिर स्थित है।

कामाख्या मंदिर में योनि की पूजा क्यों होती है ?

कामाख्या मंदिर “माँ कामाख्या” को समर्पित है इसे सबसे पुराना शक्तिपीठ माना जाता है।

मैं विजय वर्मा, भारत के झारखण्ड राज्य से हूँ। मुझे हमेशा से नए-नए स्थानों पर जाना और वहाँ परंपराओं को जानने का शौक़ रहा है, इसलिए मैंने Holiday Journey की शुरुआत की जिसके माध्यम से भारत के विभिन्न राज्यों के रीति-रिवाज, पौराणिक स्थलों, धार्मिक स्थलों, खानपान और परंपराओं को आप सबों के बीच साझा कर सकूँ ।

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